जयपुर, 11 मई । किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने राजस्थान कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1961 की धारा 17 - क के अधीन राज्य सरकार द्वारा 2% मंडी शुल्क प्राप्त करने की 5 मई को जारी अधिसूचना पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि शुल्क और कर पृथक है, शुल्क सुविधाओं के लिए प्राप्त किया जाता है जबकि ‘कर’ (टैक्स) सुविधाओं के लिए नहीं लिया जाता वरन राज अपने आय के लिए आरोपित करता है
जाट ने आज कहा कि सरकार भी शुल्क का टैक्स के रूप में उपयोग करती है । कृषि उपज मंडी अधिनियम की धारा 19-क में किसान कल्याण कोष के उपयोग से सम्बंधित जो प्रावधान किये गए है, उनमे से अनेक काम वे है, जिनके लिए टैक्स द्वारा संगृहीत बजट में से ही राशि खर्च होनी चाहिए । उन्होने कहा कि इस प्रकार के कार्यों से अविश्वास जन्म लेता है, विशवास प्राप्ति के द्वारा विरोध की संभावनाएं कम हो जाती है ।
राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि किसान कल्याण कोष का किसानो के हितों के लिए किसानो की सुविधाओं हेतु ही उपयोग किया जाएगा, इस संबंध में सरकार को सार्वजानिक रूप से घोषणा कर उसकी पालना मनसा – वाचा – कर्मणा द्वारा करनी चाहिए । उन्होने कहा कि अधिसूचना के अनुसार उपयोग राजस्थान कृषि उपज मंडी अधिनियम के अधीन बनाए गए किसान कल्याण कोष की बढ़ोतरी के लिए किया जाएगा । जिससे ‘ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नस’ की भांति ‘ईज ऑफ़ डूइंग फार्मिंग’ की कार्यवाही के लिए इस कोष के आधार पर वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेने का मार्ग सहज हो जाता है ।
उन्होने कहा कि इस किसान कल्याण कोष का उपयोग किसानों को उनके उत्पादों के दाम दिलाने के लिए किया जाएगा , इसके अंतर्गत न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं जो फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि में नहीं आती, उनके भाव बाजार में गिरने पर बाजार हस्तक्षेप योजना में खरीद का काम किया जाता है । किसान कल्याण कोष का किसानों के लिए उपयोग करने किया जाएगा , 2022 तक किसानो की आय दोगुनी करने के लिए यह कदम सही दिशा में उठाया गया सिद्ध हो सकता है I
राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि आश्चर्य की बात तो यह है कि स्वयं को किसान हितेषी बताने वाले राजनेता एवं राजनीति में काम करने वाले ‘शुल्क और कर’ के अंतर तक को नहीं समझते या वे समझते हुए भी राज प्राप्ति के प्रयासों में निंदा आधारित मार्ग पर चलते रहते है ,दूसरी ओर इसके परिणाम के संबंध में भी वे अनभिज्ञ प्रतीत होते हैं ।
उन्होने कहा कि यह शुल्क किसानो से नहीं लिया जाता है बल्कि मंडी क्षेत्र में मंडी की प्रक्रिया के अधीन कृषि उपजों की खरीद करने वालो से वसूल किया जाता है , इसमें सरकार को इतनी सावधानी रखनी चाहिए कि नया शुल्क आरोपण करने या शुल्क में बढ़ोतरी के कारण कृषि उपजो के भाव नीचे नहीं गिरे । कृषि उपजों के भाव नीचे गिरने का घाटा किसानो को उठाना पड़ता है ,इसलिए ऐसे शुल्को के आरोपण के पूर्व सरकारों को कृषि उपजों के दाम गिरने से रोकने सम्बन्धी विकल्पों पर विचार करते हुए गंभीरता से परीक्षण करना चाहिए ।
जाट ने कहा कि इन विकल्पो में व्यापार को नियमित एवं नियंत्रित करने का काम कृषि उपज मंडी अधिनियम के अधीन बनाए गए तंत्र को एक मुखी रहकर करना चाहिए । इसी दिशा में यह भी महत्वपूर्ण कदम हो सकता है कि कृषि उपज मंडी कानून में उस प्रावधान का पालन करना चाहिए जिसमें उल्लेख किया है कि जिस भी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होगा, उस उपज को, न्यूनतम समर्थन मूल्यों से कम दामों पर क्रय विक्रय रोकने का उपाय मंडी प्रशासन करेगा I इसी हेतु से मंडी क्षेत्र में कृषि उपजों का मूल्य निर्धारण के लिए लगायी जाने वाली नीलामी बोली का आरम्भ न्यूनतम समर्थन मूल्य से करने का मंडी कानून में प्रावधान किया जा सकता है ।
उन्होने कहा कि इसी के साथ ग्राम सेवा सहकारी समितियों को गौण मंडी घोषित करने के काम में तेजी लाई जाए जिससे प्रदेश में 6,570 पेक्स एवं लेम्प्स को गौण मंडियां घोषित की जा सके , इन मंडियों में आड़त नहीं होगी और किसानों के खेतो के पास होने के कारण किसानों का उपजों को लाने ले जाने के लिए वाहन का किराया एवं उतराई – चढ़ाई आदि का खर्च भी बचेगा, वहीँ किसान का आने-जाने में लगने वाला समय भी बच जाएगा।
राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि कोराना संकट के समय व्यापारियों द्वारा 5 दिन के लिए कृषि उपज मंडियों को बंद रखने का निर्णय किसान और प्रदेश के हित में नहीं है, ऐसे समय व्यापारियों को विरोध के स्थान पर सहयोगात्मक रुख रखना चाहिए, जिससे किसानों को उनकी उपजों को बेचने की सुविधा में कोई रुकावट नहीं आए ।
प्रदेश में सभी किसान हितेषियों का यह दायित्व है कि वे “शुल्क और कर” दोनों में अंतर समझते हुए शुल्क का उपयोग मात्र किसानों की सुविधाओं के लिए ही हो इस पर आग्रह रखें ,यथा - अभी किसानों के शुल्क के कोष से प्राप्त राशि का उपयोग प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के राज्यांश को चुकाने के लिए किया गया है I इसीप्रकार शुल्क की भावना के विपरीत पिछले अनेकों वर्षों में शुल्क का उपयोग किसानों की सुविधाओं के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए किया गया है, यह रुकना चाहिए I जब किसानों की उपजों को बेचने से वर्तमान में प्रचलित व्यवस्था में बाधा उत्पन्न हो जाए तो सरकार को खरीद की वैकल्पिक तैयार रखनी चाहिए I
अच्छा हो राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा दिए गए वक्तव्यों से किसान भ्रमित नहीं हो क्योंकि अनेकों बार विरोध के लिए विरोध किये जाते है I निंदा आधारित राजनीति से हटकर किसानो को अपने विवेक के अनुसार विचार पूर्वक अपना अभिमत बनाना चाहिए । उन्होने कहा कि राज प्राप्ति के लिए किसानों के हितों को बलि नहीं चढ़ाना चाहिए, हम सब समझे और मिलकर कर अपना अभिमत बनाए । इस मार्ग पर चलने पर मंडियों को बंद करने का निर्णय का हथियार किसानो के पास रहेगा ।