असली अग्नि परीक्षा तो अब होगी


    ---   सुबोध जैन ---
कोरोना जैसी महामारी के बीच लगभग 40 दिन के लॉक डाउन के बाद अब जाकर इधर-उधर फंसे विद्यार्थी और श्रमिकों की अपने अपने घरों की तरफ रवानगी प्रारंभ हो गई है। ये 40 दिन किसी यातना से कम नहीं थे, मजदूरों के पास रोजगार नहीं था तो पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों का मन घर जाने को आतुर था। लेकिन मजबूरी ऐसी थी कि किसी का बस नहीं चल रहा था।


 


केंद्र और राज्य की विभिन्न सरकारों में बहुत सोच समझने के बाद वापसी का यह कार्यक्रम तय किया क्योंकि यह भावना से जुड़ा मुद्दा था और इसी के अनुरूप कुछ राज्यों से विशेष रेलगाड़ियों का संचालन कर लोगों को अपने अपने घरों की तरफ जाने की राह बनाई है। रेल यातायात के साथ ही सड़क मार्ग से भी लोगों की आंशिक आवाजाही सशर्त प्रारंभ की गई है।


 


हालांकि रेलगाड़ी से गंतव्य तक पहुंचने के बाद चाहे विद्यार्थी हो या श्रमिक उसे 14 दिन फिर भी बहुत सावधानी के साथ एकांत में बिताने होंगे और इनमें से जो कोरोना संक्रमित पाए जाते हैं उनकी तो दुविधा और बढ़ने वाली है। इस लिहाज से भारतवर्ष में आने वाले 15 दिन न सिर्फ निर्णायक सिद्ध होंगे अपितु कोरोना की दशा और दिशा को तय करने वाले भी होंगे।
     


इस विशाल जनसंख्या वाले देश में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के चलते संक्रमित लोगों को खोजने की प्रक्रिया बहुत धीमी है। केंद्र और राज्य की सरकारे वर्तमान में सारा ध्यान टेस्टिंग प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए जुटी हुई है और सभी का यह प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग हो जिससे कि संक्रमित लोगों का पता लगाकर उचित इलाज उपलब्ध कराया जाए। लेकिन संसाधन व हालात अभी तक तो यही बयां कर रहे हैं कि दिन पर दिन रोगियों की संख्या में इजाफा हो रहा है और नित नए स्थानों से संक्रमित लोगों के चेहरे सामने आ रहे हैं।


 


स्थानीय स्तर पर पुलिस और स्वास्थ्य विभाग पूरी मुस्तैदी के साथ अपने काम को अंजाम दे रहे है लेकिन धीरे-धीरे जिस तरह कोरोना से लड़ रहे कर्मवीर ही संक्रमित होने लगे हैं तो एक तरह से निराशा और भय का वातावरण भी बनने लगा है। शहर हो या गांव सफाई कर्मी भी सैनिटाइजेशन के काम को बखूबी निभा रहे हैं लेकिन अब यह भी थकने लगे हैं। सरकार के पास संसाधन तो सीमित है पर महामारी का फैलाव विस्तृत रूप लेता जा रहा है। ऐसे में बड़े महानगरों में बीते 1 माह से फंसे हुए मजदूरों का अपने घरों की तरफ पलायन अब सबसे बड़ी चुनौती बन के उभरने वाला है।


 


  उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और राजस्थान ये ऐसे राज्य हैं जहां के लाखों बेरोजगार श्रमिक भारत की दूसरे हिस्सों में या महानगरों में रोजगार के लिए आश्रय लेते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं। लेकिन इस आपदा के बाद लाखों की संख्या में यह श्रमिक वर्ग पूरी तरह से बेरोजगार हो गया था ऐसे हालातों में लोग पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा तय कर अपने घरों तक पहुंचे हैं। जो पहुंच गए वह भाग्यशाली रहे जो बीच में ही पकड़े गए उन्हें क्वॉरेंटाइन किया गया। इनमें से भी जो संक्रमित पाए गए उनके लिए तो यह बहुत बुरा दौर साबित हुआ। फिर भी जो जहां था, जैसा था, रूखी सूखी रोटी खाकर भी जी रहा था। लेकिन अब एक लंबी यात्रा करके अपने गांव या घरों तक पहुंचना कम चुनौती वाला काम नहीं है, ये तो तब जब वो स्वस्थ निकले, अन्यथा इनके हालात आसमान से गिरे और खजूर में अटके जैसे हो सकते हैं।
 


एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन मसलन आगमन और निर्गमन की यह प्रक्रिया आने वाले समय में कितनी कष्टदायक होगी अभी इसका अंदाजा लगाना मुमकिन नहीं है लेकिन अशिक्षित व बेरोजगार श्रमिकों के चलते सोशल डिस्टेंसिंग की उम्मीद बहुत ज्यादा फलीभूत होती नहीं दिख रही, ऐसे में यदि कोरोना की कम्युनिटी स्प्रेडिंग होती है तो मई और जून में भारत देश के हालात क्या होंगे इसका सही सही अनुमान तो विशेषज्ञों के पास भी नहीं है।


सरकारों के सामने दो तरह की चुनौतियां बाहें फैला कर  खड़ी है एक तरफ घर जाने के लिए लालायित लोगों को राहत पहुंचाना दूसरी तरफ उद्योग धंधों को दोबारा से चालू करवाना है पर बात यहीं आकर अटकती है कि जो मजदूर पलायन कर गए हैं उनका फिलहाल जल्दी लौटना संभव नहीं दिखता ऐसे में उद्योग धंधों का पटरी पर आना भी दूर की कौड़ी ही दिख रहा है।