भोपाल , 29 फरवरी I
कान्हा टाइगर रिजर्व में बारासिंघा का पुन:स्थापन विश्व की वन्य-प्राणी संरक्षण की चुनिंदा सफलताओं में से एक है। कान्हा में हार्ड ग्राउण्ड बारासिंघा मात्र 66 की संख्या तक पहुँच गये थे। प्रबंधन के अथक प्रयासों से आज यह संख्या लगभग 800 हो गई है। अवैध शिकार और आवास स्थलों के नष्ट होने से यह प्रजाति विश्व की कुछ अति-संकटग्रस्त वन्य-प्राणी प्रजातियों में शामिल है।
मध्यप्रदेश का यह राज्य पशु अब आपेक्षिक तौर पर सुरक्षित हो गया है लेकिन कान्हा प्रबंधन इसे पर्याप्त नहीं मानते हुए लगातार बारासिंघा संरक्षण के प्रबंधकीय उद्देश्यों की ओर अग्रसर है। विश्व में केवल कान्हा टाइगर रिजर्व में बचे हार्ड ग्राउण्ड बारासिंघा को अन्य स्थानों पर भी बढ़ाने के उद्देश्य से हाल के सालों में 7 बारासिंघा भोपाल के वन विहार राष्ट्रीय उद्यान और 46 को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व भेजा गया है। वहाँ भी इनकी संख्या बढ़ी है।
कान्हा में पाये जाने वाले बारासिंघा का आवास कड़ी भूमि है, जबकि उत्तर पूर्व तथा उत्तर भारत में पाई जाने वाली इसकी अन्य दो प्रजातियाँ दलदली आवास स्थानों में रहती हैं। कान्हा का बारासिंघा कुछ हद तक दलदली स्थानों को पसंद करता है। इसलिये इसे स्वाम्प डियर के नाम से भी जाना जाता हैपूरे विश्व में बारासिंघा की कुल तीन उप-प्रजातियाँ भारत एवं नेपाल में पाई जाती हैं। भारत में तीनों उप-प्रजातियाँ रूसर्वस ड्यूवाउसेली, रूसर्वस ड्यूवाउसेली रंजीतसिन्ही एवं रूसर्वस ड्यूवाउसेली ब्रेंडरी क्रमश: दुधवा एवं काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, मनास राष्ट्रीय उद्यान एवं कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाती है।